शुक्रवार, 5 मई 2017

मथुरा एवं द्वारिका के बाद  जादौन राजपूतों का ऐतिहासिक  स्म्रति स्थल है बयाना का दुर्ग
कृष्ण तो साक्षात् भगवान् ही थे तो उनके लिए दूरदर्शी कहना अतिश्योक्ती होगी।उन्होंने  जरासंध को कई बार युद्ध में पराजित किया था।लेकिन एकसमय  एक और जरासंध का आक्रमण व् दूसरी तरफ कालयवन की चढ़ाई देख कर कृष्ण भगवान् ने सोचा की यवनो के साथ युद्ध  करने सेक्षीण हुई यादव सेना मगध नरेश जरासंध से अवश्य ही पराजित हो जायगी।और यदि प्रथम जरासन्ध से लड़ते है तो उससे क्षीण हुई यादव सेना को कालयवन नस्ट कर देगा।इस प्रकार यादवों पर एकसाथ  यह दो तरह की आपत्ति आ पहुंची।अत भगवान् ने सोचा की में यादवों के लिए एक ऐसा दुर्जय दुर्ग तैयार करता हूँ की जिसमे मेरी अनुपस्थिति में भी कोई शत्रु भी यादवों को पराभूत न कर सके।ऐसा बिचार करके भगवान् कृष्ण ने समुद्र से 12 योजन भूमि मांगी और उसमे द्वारिकापुरी का निर्माण किया।कालयवन के समीप आने पर कृष्ण सम्पूर्ण मथुरा बासियों  को  द्वारिका लेआये। और खुद मथुरा लौट गाइये। इस बजह से यादवों को एक बार मथुरा नागरी छोड़नी पड़ी।दुसरी बार जब  ऋषियो   के शाप से सभी प्रधान प्रधान यादव आपस में  लड़ कर मर गए तो उनमे से अनुरुद्ध के बेटे वज्रनाभ को अर्जुन ने पुनः मथुरा कआ राजा बनाया। उस समय मथुरा की आर्थिक दशा बहुत खराव थी ।जरासंध नेसबकुछ नस्ट कर दीया था।ये कृष्ण के प्रपोत्र थे। वज्र  के 74 पीढ़ी बाद राजा धर्म पाल मथुरा के राजा बने।यही प्रथम राजा थे जिन्होंने   अपने  नाम के साथ "पाल"शब्द  लगाया जो आज तक करौली के साथ साथ सभी जादौन राजपूतों  में चला आरहा  है।पाल सब्द  से ही पहले जादौन राजपूत पहिचाने जाते थे।राजाधर्म पाल  सन्800 के लगभग मथुरा के  शासक थे।इस प्रकार ये कृष्ण के 77 वी  पीढ़ी में थे।इनके10वी पीढ़ी बाद राजा जयेंद्र पाल मथुरा के राजा बने। इनके 1 पीढ़ी बाद इनके बेटे विजयपाल मथुरा के राजा बने।इनको कृष्ण के 88 वी पीढ़ी में माना गया है। 1018ईस्वी  में महमूद गजनवी  दुआरा मथुरा लूटी जाने पर विजयपाल अपनी राजधानी मानी पहाड़ी पर ले गए। इसी पहाड़ी पर बाणासुर दुरा बनबाये  हुए  उसके दुर्ग का सन् 1040 में जीर्णोंधार  करवाया। इस दुर्ग का नाम विजयमन्दिरगढ़  था। यही पर राजा विजयपाल ने अपनी राजधानी स्थापित की। यही दुर्ग बाद में बयाना बयाना  के नाम से प्रसिद्ध हुआ।मथुरा से राजधानी  हटाने का कारण यह था की यह स्थान  पहाड़ों से घिरा  रहने   के कारण सुरक्षित  था।ये बहुत पराक्रमी राजा थे।इन्होंने 53 वर्ष राज किया।।इनके 18 बेटे थे।जिनमे तिमानपाल सबसे  बड़े थे।करौली की खातों के अनुसार बिजयपाल की गजनी के मुगलों के साथ मुठभेड़ बयाना में हुई।जिसमे उन्होंने मुगलोंको  परास्त किया। और अंत समय में शिव के मंदिर में जाकर अपना सरकाट  कर महादेव्  को चढ़ा दिया।और उनकी कई रानिया भी सती हुई।मुगलों ने अवसर पाकर यादवों का ये बयाना का दुर्ग अपने अधिकार में किया।इस प्रकार 51 वर्ष तक बयाना पर जादौन राजपूतों का अधिकार रहा।महाकवि चंद्रवरदाई के पृथ्वीराजरासो के अनुसार 12 वी सदी में बयाना के आस पास  जदोनो का प्रबल प्रभाव था।करनैल करनिघम के कथानुसार राजा विजयपाल ने विजयमन्दिरगढ़ के अलावा मदनगढ़  तबन्गढ़  जगनेर  के पास बीजलपुर  ,भुसावल के पास रीतबार  आदि कई किले बनबाये।राजा विजयापाल को कई गुणों में उनके पूर्वज भगबान कृष्ण के कुछ समदरसी माना है।नरपति नाह नाम के कवी दुरा लिखित परुंत अविकल रूप से अप्राप्त विजपालरासो नामक काव्य में महाराज विजयपाल के बलवेभ्व का वररण मिलता है।इस प्रकार बयाना को जादौन राजपूतों की पुनः कर्मस्थली  जन्मस्थली पवित्रस्थस्लि मन गया है।जय हिन्द।डा0 धीरेन्द्र सिंह जादौन गांव लरहोता  सासनी जिला हाथरस उत्तरप्रदेश।

जलेसर ऐटा यूपी के जादौन राजपूतौ का इतिहास भगवान कृष्ण की मृत्यू के बाद बज् नाथ मथुरा के राजा बने।इनके 84पीडी बाद जयेन्द् पाल मथुरा के राजा हुये।उनके आठ बेटा हुयेजिनमे विजय पाल सबसे बडे थे जो इस वंश के सबसे पृ सिध्द राजा हुये।राजा बिजयपाल मुगलो की बजह से मथुरा से वयाना आ कर वस गये।ऑर बयाना को राजधानी बनाया।इनहौने ही बिजयगढ का किला बनबाया था जो बयाना मे है।यह घटना सन्1040या1043की है।इनके13बेटे हुये।जिनमे तिमनपाल सबसे बडे थे।इनके बाकी भाईयो का इतिहास बाद मे बताउंगा।राजा तिमनपाल ने सन्1073मे बयाना ऑर हिंडौन के लगभग 40किलो मी दूर तिमनगढ का किला बनबाया था।राजा तिमनपाल के10 बेटा हुये जिनमे 1-धरमपाल 2-कुमरपाल 3-कीरतपाल 4-भवनपाल 5-मदनपाल 6-संवेदपाल 7मानदोपाल 8-पृथवीपाल 9 सोमीपाल 10-महीपाल।इनकी माता बघेजन हमीर राजा की बेटी थी।एक बेटा ऑर था जिसका नाम हरियाहरपाल था जो दासी से पैदा था।राजा तिमनपाल के दूसरेबेटे कुवरपाल जी करौली के राजा सन्1120के लगभग बने।राजा तिमनपाल के तीसरे बेटे कीरतपाल जी कीरतगढ मे जा कर बसे।इनके 6 बेटे हुये जिनके नाम1- सोनपाल 2-तुचछपाल 3-कवनपाल 4-दानीपाल 5-भुखपाल 6-देवनपाल। ये सभी भाई रानी सिसोदिनी से पैदा थे जो चितौड के राजा की बेटी थी।ये 6 भाई राजा बिजयपाल की मृत्यू के बाद उनको गंगाजी सोरो पर तिलानजली देने को आये।साथ मे कुछ फौज भी लाये थे।रासते मे जलेसर आकर रुके।उस समय उनके कुछ घोडे रात को सोनगिर के चाॅद खान मेवाती ने चुरा लिये थे।उस समय तो वे गंगाजी चले गये ऑर दाह संसकार के बाद वापिस जलेसर आये ऑर राजा सोनपाल जी ने चाॅद खान मेवाती के साथ साथ16000मेवातीयौ को मार कर भारत की ध्वजा सीमा मे गाडी ऑर सौना गाॅव बसाया जिसे आज सौनाम ई के नाम से जाना जाता है जो जलेसर के आस पास है।इसी कारण राजा सोनपाल के वंशज सोनगिरिया भारद्ववाज उफॅ भृगुदेह जादौ न कहलाये। राजा सोनपाल के बाकी भाईयो के वंश का इतिहास बाद के भाग मे करुगा।राजासोनपाल के एक बेटा जैनपाल हुये जिनकी माता रानी पुणडीरनी थी जो हरिदुआर के राजा हरिदेव सिह की बेटी थी।इन जैनपाल राजा ने जैन खान मेवाती को मार कर जैनपुरा की राजधानी कीनही। इसी तरह जैनपाल जी ने उमरगढ के उमर खा न मेवाती को मार कर उमरगढ की राजधानी हासिल की।उस समय जलेसर के आस पास मेवातीयौ का शासन था।ये घटनाये संवत्1173 के लगभग की है। राजा जैनपाल की 3 रानीयाॅ थी जिनमे बडी रानी राठौड थी जो राजारामपुर के राजा की बेटी थी।जिनसे 1-पूरनपाल 2-वीझनपाल दो बेटे हुये।दूसरी रानी गहलौतिन सैप ऊ के राजा की बेटी थी उनसे 1-सोगीपाल ऑर 2-करनपाल दो बेटे हुये।ऑर तीसरी रानी कठैरिनी थी ।जिनसे एक बेटे लोचनपाल पैदा हुये।जैनपाल महाराज ने अपनी राजधानी मे से पाचौ बेटौ को बरावर बराबर राजय दीया।जिसका बटबारा संवत्1225 मे कीया था। 1-पूरनपाल को 12गाॅव मिला कर ओखरा की राजधानी दी जिनके वंशज भृगुदे राना कहलाये।जिसे भृगुदे गौत् कहा जाता है। 2वीझलपाल को 12 गाॅव नारखी राजय मे दिये इनके वंशज टीकेत भृगुदे कहलाये। 3-सोगीपाल को उमरगढ की 12 गाॅव की राजधानी दी इनके वंशज राव कहलाये।4-करनपाल को 12गाॅव मिलाकर जोधरी की राजधानी दी जिनके वंशज सरावत कहलाये।5 लोचनपाल को12 -गाॅव मिलाकर खैरीया की राजधानी दी।ओखरा,नारखी ,एवंउमरगढ इन तीनो खोरौ का रकवा 35000-35000बीघा का था।ऑर जोधारी ऑर खैरीया का 22000-22000बीघा का रकवा था । कुल मिला कर 60गाॅव की जमीन का रकवा 149000बीघा काथा। इनसे आगेकुछ ऑर गाॅवो जैसे रनजीतगढी ,पृथवीगढी , रनछोरगढी , फतेगढी ,महाराजपुर ,सखावत ,पुर , वरा अलीगढ ,पिलखतरा का इतिहास बतायेगे।जय हिन्द। लेखक -ङाॅ धीरेन्द् सिंह जादौन गाॅव-लढौता सासनी के पास जिला-हाथरस यूपी ।वतॅमान मे सवाईमाधोपुर राज0के पी0जी 0 कालेज मे व्याख्याता कृषि मृदा वि 0के पद पर कायॅरत है।