मथुरा एवं द्वारिका के बाद जादौन राजपूतों का ऐतिहासिक स्म्रति स्थल है बयाना का दुर्ग
कृष्ण तो साक्षात् भगवान् ही थे तो उनके लिए दूरदर्शी कहना अतिश्योक्ती होगी।उन्होंने जरासंध को कई बार युद्ध में पराजित किया था।लेकिन एकसमय एक और जरासंध का आक्रमण व् दूसरी तरफ कालयवन की चढ़ाई देख कर कृष्ण भगवान् ने सोचा की यवनो के साथ युद्ध करने सेक्षीण हुई यादव सेना मगध नरेश जरासंध से अवश्य ही पराजित हो जायगी।और यदि प्रथम जरासन्ध से लड़ते है तो उससे क्षीण हुई यादव सेना को कालयवन नस्ट कर देगा।इस प्रकार यादवों पर एकसाथ यह दो तरह की आपत्ति आ पहुंची।अत भगवान् ने सोचा की में यादवों के लिए एक ऐसा दुर्जय दुर्ग तैयार करता हूँ की जिसमे मेरी अनुपस्थिति में भी कोई शत्रु भी यादवों को पराभूत न कर सके।ऐसा बिचार करके भगवान् कृष्ण ने समुद्र से 12 योजन भूमि मांगी और उसमे द्वारिकापुरी का निर्माण किया।कालयवन के समीप आने पर कृष्ण सम्पूर्ण मथुरा बासियों को द्वारिका लेआये। और खुद मथुरा लौट गाइये। इस बजह से यादवों को एक बार मथुरा नागरी छोड़नी पड़ी।दुसरी बार जब ऋषियो के शाप से सभी प्रधान प्रधान यादव आपस में लड़ कर मर गए तो उनमे से अनुरुद्ध के बेटे वज्रनाभ को अर्जुन ने पुनः मथुरा कआ राजा बनाया। उस समय मथुरा की आर्थिक दशा बहुत खराव थी ।जरासंध नेसबकुछ नस्ट कर दीया था।ये कृष्ण के प्रपोत्र थे। वज्र के 74 पीढ़ी बाद राजा धर्म पाल मथुरा के राजा बने।यही प्रथम राजा थे जिन्होंने अपने नाम के साथ "पाल"शब्द लगाया जो आज तक करौली के साथ साथ सभी जादौन राजपूतों में चला आरहा है।पाल सब्द से ही पहले जादौन राजपूत पहिचाने जाते थे।राजाधर्म पाल सन्800 के लगभग मथुरा के शासक थे।इस प्रकार ये कृष्ण के 77 वी पीढ़ी में थे।इनके10वी पीढ़ी बाद राजा जयेंद्र पाल मथुरा के राजा बने। इनके 1 पीढ़ी बाद इनके बेटे विजयपाल मथुरा के राजा बने।इनको कृष्ण के 88 वी पीढ़ी में माना गया है। 1018ईस्वी में महमूद गजनवी दुआरा मथुरा लूटी जाने पर विजयपाल अपनी राजधानी मानी पहाड़ी पर ले गए। इसी पहाड़ी पर बाणासुर दुरा बनबाये हुए उसके दुर्ग का सन् 1040 में जीर्णोंधार करवाया। इस दुर्ग का नाम विजयमन्दिरगढ़ था। यही पर राजा विजयपाल ने अपनी राजधानी स्थापित की। यही दुर्ग बाद में बयाना बयाना के नाम से प्रसिद्ध हुआ।मथुरा से राजधानी हटाने का कारण यह था की यह स्थान पहाड़ों से घिरा रहने के कारण सुरक्षित था।ये बहुत पराक्रमी राजा थे।इन्होंने 53 वर्ष राज किया।।इनके 18 बेटे थे।जिनमे तिमानपाल सबसे बड़े थे।करौली की खातों के अनुसार बिजयपाल की गजनी के मुगलों के साथ मुठभेड़ बयाना में हुई।जिसमे उन्होंने मुगलोंको परास्त किया। और अंत समय में शिव के मंदिर में जाकर अपना सरकाट कर महादेव् को चढ़ा दिया।और उनकी कई रानिया भी सती हुई।मुगलों ने अवसर पाकर यादवों का ये बयाना का दुर्ग अपने अधिकार में किया।इस प्रकार 51 वर्ष तक बयाना पर जादौन राजपूतों का अधिकार रहा।महाकवि चंद्रवरदाई के पृथ्वीराजरासो के अनुसार 12 वी सदी में बयाना के आस पास जदोनो का प्रबल प्रभाव था।करनैल करनिघम के कथानुसार राजा विजयपाल ने विजयमन्दिरगढ़ के अलावा मदनगढ़ तबन्गढ़ जगनेर के पास बीजलपुर ,भुसावल के पास रीतबार आदि कई किले बनबाये।राजा विजयापाल को कई गुणों में उनके पूर्वज भगबान कृष्ण के कुछ समदरसी माना है।नरपति नाह नाम के कवी दुरा लिखित परुंत अविकल रूप से अप्राप्त विजपालरासो नामक काव्य में महाराज विजयपाल के बलवेभ्व का वररण मिलता है।इस प्रकार बयाना को जादौन राजपूतों की पुनः कर्मस्थली जन्मस्थली पवित्रस्थस्लि मन गया है।जय हिन्द।डा0 धीरेन्द्र सिंह जादौन गांव लरहोता सासनी जिला हाथरस उत्तरप्रदेश।
कृष्ण तो साक्षात् भगवान् ही थे तो उनके लिए दूरदर्शी कहना अतिश्योक्ती होगी।उन्होंने जरासंध को कई बार युद्ध में पराजित किया था।लेकिन एकसमय एक और जरासंध का आक्रमण व् दूसरी तरफ कालयवन की चढ़ाई देख कर कृष्ण भगवान् ने सोचा की यवनो के साथ युद्ध करने सेक्षीण हुई यादव सेना मगध नरेश जरासंध से अवश्य ही पराजित हो जायगी।और यदि प्रथम जरासन्ध से लड़ते है तो उससे क्षीण हुई यादव सेना को कालयवन नस्ट कर देगा।इस प्रकार यादवों पर एकसाथ यह दो तरह की आपत्ति आ पहुंची।अत भगवान् ने सोचा की में यादवों के लिए एक ऐसा दुर्जय दुर्ग तैयार करता हूँ की जिसमे मेरी अनुपस्थिति में भी कोई शत्रु भी यादवों को पराभूत न कर सके।ऐसा बिचार करके भगवान् कृष्ण ने समुद्र से 12 योजन भूमि मांगी और उसमे द्वारिकापुरी का निर्माण किया।कालयवन के समीप आने पर कृष्ण सम्पूर्ण मथुरा बासियों को द्वारिका लेआये। और खुद मथुरा लौट गाइये। इस बजह से यादवों को एक बार मथुरा नागरी छोड़नी पड़ी।दुसरी बार जब ऋषियो के शाप से सभी प्रधान प्रधान यादव आपस में लड़ कर मर गए तो उनमे से अनुरुद्ध के बेटे वज्रनाभ को अर्जुन ने पुनः मथुरा कआ राजा बनाया। उस समय मथुरा की आर्थिक दशा बहुत खराव थी ।जरासंध नेसबकुछ नस्ट कर दीया था।ये कृष्ण के प्रपोत्र थे। वज्र के 74 पीढ़ी बाद राजा धर्म पाल मथुरा के राजा बने।यही प्रथम राजा थे जिन्होंने अपने नाम के साथ "पाल"शब्द लगाया जो आज तक करौली के साथ साथ सभी जादौन राजपूतों में चला आरहा है।पाल सब्द से ही पहले जादौन राजपूत पहिचाने जाते थे।राजाधर्म पाल सन्800 के लगभग मथुरा के शासक थे।इस प्रकार ये कृष्ण के 77 वी पीढ़ी में थे।इनके10वी पीढ़ी बाद राजा जयेंद्र पाल मथुरा के राजा बने। इनके 1 पीढ़ी बाद इनके बेटे विजयपाल मथुरा के राजा बने।इनको कृष्ण के 88 वी पीढ़ी में माना गया है। 1018ईस्वी में महमूद गजनवी दुआरा मथुरा लूटी जाने पर विजयपाल अपनी राजधानी मानी पहाड़ी पर ले गए। इसी पहाड़ी पर बाणासुर दुरा बनबाये हुए उसके दुर्ग का सन् 1040 में जीर्णोंधार करवाया। इस दुर्ग का नाम विजयमन्दिरगढ़ था। यही पर राजा विजयपाल ने अपनी राजधानी स्थापित की। यही दुर्ग बाद में बयाना बयाना के नाम से प्रसिद्ध हुआ।मथुरा से राजधानी हटाने का कारण यह था की यह स्थान पहाड़ों से घिरा रहने के कारण सुरक्षित था।ये बहुत पराक्रमी राजा थे।इन्होंने 53 वर्ष राज किया।।इनके 18 बेटे थे।जिनमे तिमानपाल सबसे बड़े थे।करौली की खातों के अनुसार बिजयपाल की गजनी के मुगलों के साथ मुठभेड़ बयाना में हुई।जिसमे उन्होंने मुगलोंको परास्त किया। और अंत समय में शिव के मंदिर में जाकर अपना सरकाट कर महादेव् को चढ़ा दिया।और उनकी कई रानिया भी सती हुई।मुगलों ने अवसर पाकर यादवों का ये बयाना का दुर्ग अपने अधिकार में किया।इस प्रकार 51 वर्ष तक बयाना पर जादौन राजपूतों का अधिकार रहा।महाकवि चंद्रवरदाई के पृथ्वीराजरासो के अनुसार 12 वी सदी में बयाना के आस पास जदोनो का प्रबल प्रभाव था।करनैल करनिघम के कथानुसार राजा विजयपाल ने विजयमन्दिरगढ़ के अलावा मदनगढ़ तबन्गढ़ जगनेर के पास बीजलपुर ,भुसावल के पास रीतबार आदि कई किले बनबाये।राजा विजयापाल को कई गुणों में उनके पूर्वज भगबान कृष्ण के कुछ समदरसी माना है।नरपति नाह नाम के कवी दुरा लिखित परुंत अविकल रूप से अप्राप्त विजपालरासो नामक काव्य में महाराज विजयपाल के बलवेभ्व का वररण मिलता है।इस प्रकार बयाना को जादौन राजपूतों की पुनः कर्मस्थली जन्मस्थली पवित्रस्थस्लि मन गया है।जय हिन्द।डा0 धीरेन्द्र सिंह जादौन गांव लरहोता सासनी जिला हाथरस उत्तरप्रदेश।
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